जब हम 5 इंद्री और 5 कर्मेन्द्रि और 5 प्राणों को तप के माध्यम से महान बना लेते हैं तो हमारे शरीर का बाहरी जगत तो तपस्या से चमकने लगता है । लेकिन आंतरिक जगत को तपाने की भी जरूरत होती है । शरीर के आंतरिक जगत में 5 उपप्राण और 7 चक्र को तपाने से शरीर का आंतरिक जगत भी चमकने लगेगा । शरीर के आंतरिक जगत में पहला उपप्राण “नाग” होता है । नाग उपप्राण शरीर में हमेशा क्रोध और वासना उत्पन्न करता रहता है । इसको तपाने से मनुष्य को वासना और क्रोध नहीं आता है तथा शरीर में अमृत बना रहता है ।
दूसरा उपप्राण “देवदत्त” होता है । इस प्राण का कार्य सुंदरता को धारण करना होता है । तथा उसको चित को प्रदान कर देता है । अगर देवदत्त उपप्राण को महान बना लिया जाये तो आपका चित और उसके संस्कार तथा सुंदरता बनी रहेगी ।
तीसरा उपप्राण “धनंजय’ होता है । अगर नाग उपप्राण किसी कारण बस अपना कार्य न करे तो उस कार्य को धनंजय उपप्राण कर देता है । अगर हम धनंजय उपप्राण को तप से महान बना लेते हैं तो वासना और क्रोध और अहंकार शरीर से समाप्त हो जाता है ।
चौथा उपप्राण “कूर्म उपप्राण “होता है । इस प्राण के तप के माध्यम से हम ब्रह्मा में रमण कर सकते हैं तथा स्थूल शरीर को छोटा या बड़ा कर सकते हैं ।
और पाँचवाँ उपप्राण “कृकल” होता है । यह उपप्राण हमारे शरीर में अग्नि को बढ़ा देता है या घटा देता है । जब हमारे आन्तरिक शरीर में ये 5 उपप्राण तपस्या से महान हो जाते हैं तो शरीर का आंतरिक जगत चमकने लगता है ।
कूर्म और कृकल उपप्राणों के मिलान से शरीर को छोटा या बड़ा किया जा सकता है । अगर इन दोनों उपप्राणों को उदान प्राण से मिलान कर दिया जाये तो शरीर को बहुत छोटा यानि शूक्ष्म या विशाल किया जा सकता है ।
हमारी प्रकृति की 5 प्रकार की गति होती है 1-आकुज्चन 2-प्रसारण 3-ऊर्ध्वा 4- ध्रवा 5 –गमन । जब हम तपस्या से अपने 5 इंद्री 5 कर्मेन्द्रि 5 प्राण 5 उपप्राण को महान बना लेते हैं तो शरीर का बाहरी जगत और आन्तरिक जगत तप से चमकने लगता है । और जब तपस्वी योगी इन 5 प्रकार की गति को कूर्म और कृकल उपप्राणों से मिलान कर लेता है तो वही तपस्वी अपने शरीर को बहुत छोटा कर सकता है या बड़ा कर सकता है और अन्तरिक्ष में उड़ान भर सकता है । इन प्राण विद्याओं को हनुमान जी जानते थे । इस तपस्या को करने के लिए सबसे पहले आपको अष्टांग योग का अभ्यास करना चाहिए ।
(आचार्य रावत)
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