नई दिल्ली,एन डी टी एफ ने एक बार डूटा चुनाव में अध्यक्ष पद पर डा ए के भागी को चुनाव मैदान में उतारा है। डा भागी दो दशक से ज्यादा समय से युनिवर्सिटी शिक्षक राजनीति में निरंतर सक्रिय हैं।दो बार अकादमिक परिषद और दो बार विश्विद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य के रूप में काम कर चुके डा भागी के खाते में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां दर्ज हैं।
डा भागी के अनुसार डी यू में वर्षो से कार्यरत हजारों तदर्थ शिक्षकों का रेगुलराइजेशन/समायोजन एन डी टी एफ की सर्वोच्च प्राथमिकता है। 2018 के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के रेगुलेशन को तैयार कराने और उसमें शिक्षक हितैषी प्रावधान कराने में एन डी टी एफ ने संगठन के रुप में अग्रणी भूमिका निभाई। इस रेगुलेशन में प्रमोशन की प्रकिया पर विशेष ध्यान दिया गया। इस रेगुलेशन के माध्यम से कॉलेजों में प्रोफ़ेसर और विश्वविद्यालय में सीनियर प्रोफेसर पद सृजित कराए गए। जिसके कारण विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालय में सैंकड़ों प्रोफ़ेसर और सीनियर प्रोफेसर पद पर पदोन्नतियां हो चुकी हैं । एपीआई और पीबीएएस अंक व्यवस्था के कारण वर्षों तक प्रमोशन का कार्य बाधित हुआ । 2018 के रेगुलेशन ने प्रमोशन को आसान, तीव्र और विकेंद्रीकृत किया और एक डेढ़ साल के कम समय में भी हजारों की संख्या में प्रमोशन संभव हुए हैं।एन डी टी एफ ने 200 प्वाइंट रोस्टर लागू करवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके चलते यूनीवर्सिटी में सामाजिक न्याय सुनिश्चित हुआ।इसमें भी एन डी टी एफ का उल्लेखनीय योगदान रहा।
एन डी टी एफ महासचिव डा वी एस नेगी ने कहा कि डी यू में अब तदर्थ शिक्षकों को भी वार्ड कोटा का लाभ मिलने लगा है। यूनीवर्सिटी में तदर्थ शिक्षकों को वार्ड कोटा दिलाने और सीटें बढ़वाने में एन डी टी एफ ने निरंतर सक्रिय होकर काम किया। डा भागी ने बताया कि वैश्विक महामारी में कई शिक्षकों की असमय मृत्यु से संबंधित परिजन तथा युनिवर्सिटी को बहुत नुकसान हुआ। एन डी टी एफ ने आपात समय में शिक्षक परिजन की मदद के लिए बंद पड़े टीचर वेलफेयर को फंड पुन शुरु कराया तथा तदर्थ शिक्षकों के लिए भी इस फंड से मदद का प्रावधान कराया। वेलफेयर फंड की राशि भी आठ लाख कराने में संगठन की भूमिका रही। 5 दिसंबर के रिकॉर्ड ऑफ डिस्कसन के माध्यम से तदर्थ शिक्षकों के लिए राहत प्रदान कराने में भी एन डी टी एफ ने यथासंभव प्रयास कर योगदान दिया। शिक्षक नियुक्ति के लिए सक्रिनिंग प्रक्रिया को आसान बनवाया गया। पहले न्यूनतम साठ अंक की सीमा को कम करवा कर पचास अंक कराया गया। ओबीसी की सैकिंड ट्रेंच के पदों को स्वीकृति दिलाने में भी नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की उल्लेखनीय भूमिका रही।
